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कब हैं मकर संक्रांति 2024 में , तिथि और शुभ मुहूर्त : kab hain makar sankraanti 2024 mein , tithi aur shubh muhoort

मकर संक्रांति 2024 – Makar Sankranti 2024

सोमवार, 15 जनवरी 2024
महापुण्य काल सुबह 07 बजकर 11 मिनट से 05 बजकर 45 मिनट तक रहेगा।

मकर संक्रांति हिन्दुओं का प्रमुख त्योहार है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तब इस त्योहार को मनाया जाता है। जिसे हम 14 जनवरी या 15 जनवरी को मनाते हैं। क्योंकि इसी दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ कर मकर राशि में प्रवेश करता है। मकर संक्रांति के दिन से ही सूर्य की उत्तरायण गति भी प्रारम्भ होती है। इसे विभिन्न नामों पर मनाया जाता है, जैसे कि ‘मकर संक्रांति’ खिचड़ी ,उत्तर भारत में, ‘पोंगल’ तमिलनाडु और दक्षिण भारत में, ‘माघ बिहू’ असम में, ‘लोहड़ी’ पंजाब और हरियाणा में, ‘उत्तरायण’ गुजरात में, ‘बिहू’ असम में, और अन्य नामों पर भी मनाया जाता है।

मकर संक्रांति एक हार्वेस्ट फेस्टिवल होता है जो फसलों की कटाई के मौसम में मनाया जाता है और सूर्य की ऊंचाइयों के बदलते रुख के साथ आता है। इस दिन लोग सूर्य की पूजा करते हैं और विभिन्न प्रकार के पर्वपर्व आयोजित करते हैं, जैसे कि पूजा, खेतों में खेती करना, खेतों को सजाना, विभिन्न प्रकार के खाने बनाना।

उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से ‘दान का पर्व’ है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन गंगा में स्नान करने के बाद दान देने की भी परम्परा है। इस दिन गंगा स्नान करके तिल के मिष्ठान आदि को ब्राह्मणों व पूज्य व्यक्तियों को दान दिया जाता है और इस पर्व पर क्षेत्रों में गंगा एवं रामगंगा घाटों पर बड़े-बड़े मेले लगते है। बिहार में मकर संक्रांति को खिचड़ी नाम से जाता हैं। इस दिन उड़द, चावल, तिल, चिवड़ा, गौ, स्वर्ण, ऊनी वस्त्र, कम्बल आदि दान करने का अपना महत्त्व है।

मकर संक्रांति का  महत्व:makar sankraanti ka mahatv

हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार, इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं। जैसाकि हम सब जानते है की शनि ग्रह मकर और कुंभ राशि के स्वामी है इसलिए मकर संक्रांति का पर्व पिता-पुत्र के मिलन से भी सम्बंधित है। मकर संक्रांति के दिन तीर्थ स्थानों पर पवित्र स्नान करने का काफी महत्व होता है।

शास्त्रों में दक्षिणायन को नकारात्मकता और उत्तरायण को सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। श्रीभगवद् गीता के अध्याय 8 में भगवान कृष्ण ने कहा हैं कि उत्तरायण के छह माह के दौरान देह त्यागने से ब्रह्म गति प्राप्त होती हैं जबकि दक्षिणायन के छह महीने में देह त्यागने वाले मनुष्य को संसार में पुनः जन्म-मृत्यु के चक्र की प्राप्ति होती हैं।

 

 

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