मार्गशीर्ष पूर्णिमा-Margashirsha Purnima
हमारे हिन्दू धर्म में मार्गशीर्ष के महीने को दान-धर्म और भक्ति का माह माना जाता है। श्रीमदभागवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं कहा है कि महीनों में मैं मार्गशीर्ष का पवित्र महीना हूं। पौराणिक मान्याताओं के अनुसार मार्गशीर्ष माह से ही सतयुग काल आरंभ हुआ था। इस माह में आने वाली पूर्णिमा को मार्गशीर्ष पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन स्नान, दान और तप का विशेष महत्व बताया गया है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन हरिद्वार, बनारस, मथुरा और प्रयागराज आदि जगहों पर श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान और तप आदि करते हैं।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा तिथि ,मुहूर्त – Margashirsha Purnima Tithi ,Muhoort
मार्गशीर्ष पूर्णिमा तिथि : 15 दिसम्बर 2024 को है।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा मुहूर्त की शुरुआत : 14 दिसंबर शाम 5:03 पर होगी और इसका समापन 15 दिसंबर 2024 को दोपहर 2:35 पर होगा।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा व्रत और पूजा विधि – Margashirsha Purnima Vrat Pujaa Vithi
मार्गशीर्ष पूर्णिमा व्रत भारतीय हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण माना जाता है और इसे मनाने का तरीका विशेष रूप से महिलाएं अपनाती हैं। मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन व्रती अपनी ईश्वरीय आराधना और पूजा के माध्यम से ईश्वर की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।
सामग्री:
- एक सफ़ेद कपड़ा (पूजा के लिए)
- दीपक (घी का)
- अगरबत्ती
- फल
- सुपारी
- नारियल
- पान के पत्ते
- चावल
- धूप
- गुलाबजल
- गंगाजल
- चंदन
- कुमकुम
- अर्चना सामग्री
व्रत विधि:
मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन व्रत एवं पूजन करने सभी सुखों की प्राप्ति होती है। इस व्रत की पूजा विधि इस प्रकार है
- पहले व्रती को स्नान करना चाहिए।
- स्नान के बाद व्रती को सफ़ेद कपड़े में सजीव व्रत की मूर्ति को स्थापित करनी चाहिए। फिर उस मूर्ति की पूजा करनी चाहिए।
- अब पूजा में दीपक, अगरबत्ती, फल, फूल, सुपारी, नारियल, पान के पत्ते, चावल, धूप, गंगाजल, गुलाबजल, चंदन, कुमकुम आदि की अर्चना करनी चाहिए।
- पूजा के बाद व्रती को व्रत कथा सुननी चाहिए।
- व्रत कथा सुनने के बाद व्रती को ब्राह्मणों को दान देना चाहिए।
- आखिर में, व्रती को प्रदक्षिणा करनी चाहिए और ईश्वर से आशीर्वाद प्रार्थना करनी चाहिए।
यह व्रत सावन महीने के पूर्णिमा के दिन की जाती है और इसे समाप्त करने के बाद व्रती को सावन के महीने तक शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए। इस व्रत का पालन करने से व्रती को ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है और उसकी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा का धार्मिक महत्व-Margashirsha Purnima Ka Dhaarmik Mahatv
पौराणिक मान्यता है कि मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर तुलसी की जड़ की मिट्टी से पवित्र नदी, सरोवर या कुंड में स्नान करने से भगवान विष्ण की विशेष कृपा मिलती है। इस दिन किये जाने वाले दान का फल अन्य पूर्णिमा की तुलना में 32 गुना अधिक मिलता है, इसलिए इसे बत्तीसी पूर्णिमा भी कहा जाता है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा के अवसर पर भगवान सत्यनारायण की पूजा व कथा भी कही जाती है। यह परम फलदायी बताई गई है। कथा के बाद इस दिन सामर्थ्य के अनुसार गरीबों व ब्राह्मणों को भोजन और दान-दक्षिणा देने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं।