ढढोर गोत्र ( Dhandhor Gotra ) के यदुवंशी क्षत्रियो का इतिहास

History Of  Yadav Dadhor Gotra 
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बागी पुर्वांचल की धरती पर आबाद मर्द क्षत्रिय अहीरो में यदुवंश की दो शाखा सबसे प्रसिद्ध है पहला ढढोर दूसरा गवालवंशी ।  आज बात करेंगे ढढोर यादवो के इतिहास के बारे में:-

क्या आप जानते है की यदुवंशी या यादव के कितने गोत्र हैं?

ढढोर गोत्र के अहीरों का इतिहास – History Of  Yadav Dadhor Gotra 

ढढोर यदुवंशी अहीरों की एक प्रसिद्धि खाप/गोत्र है जिनका निकास राजस्थान के प्रसिद्ध ढूंढार क्षेत्र से हुआ है। राजस्थान में जयपुर के आसपास के क्षेत्र जैसे करौली, धौलपुर, नीमराणा और ढीग बयाना के विशाल क्षेत्र को ” ढूंढार ” कहा जाता है एवं यहाँ ढूंढारी भाषा बोली जाती है। आज भी यहाँ ढंढोर अहीरों के गांव मौजूद हैं।

सन् 1018 में मथुरा के महाराज कुलचंद्र यादव और महमूद गज़नी के बीच भीषण युद्ध हुआ जिसमें गज़नी की सेना ने छल से यदुवंशीयों को पराजित कर दिया।

पराजय के बाद महमूद गज़नी की ओर से होने वाले आक्रमणों से जान और माल की सुरक्षा दिनो-दिन कम होती जा रही थी ।

राजा कुलचंद्र यादव के पुत्र राजा विजयपाल यदुवंशी के नेतृत्व में ज्यादातर यादव बयाना आ गए।

इस लिए विजयपाल यदुवंशी ने मथुरा के मैदान पर बनी अपनी प्राचीन राजधानी छोड़कर पूर्वी राजस्थान की मानी नामक पहाड़ी के शिखर भाग पर बयाना का दुर्ग का निर्माण कर वाया ।
विजयपाल रासो नामक ग्रन्थ में इस राजा के पराक्रम का अच्छा वर्णन है ।
इसमे लिखा है कि महाराजा विजयपाल का 1045ई0 में अबूबकशाह कंधारी से घमासान युद्ध हुआ ।

“ख्यात”के लेखक भी गजनी के शासक से उसके संघर्ष का उल्लेख करते है ।
अंत में बयाना दुर्ग में जौहर करके यादव वीरों ने विदेशी मुस्लिंम आक्रमणकारियों का बहुत अच्छा सामना किया और मातृभूमि पर मर मिटे ।

ढढोर अहीर मूलत – Origin Of Dadhor Gotra

द्वारिकाधीश भगवान कृष्ण के प्रपौत्र युवराज वज्रनाभ यदुवंशी के वंशजों में से एक माने जाते हैं एवं इनकी अराध्य देवी कैलादेवी(कंकाली माता) हैं जिन्हें योगमाया विंध्यावासिनी माँ भी कहा जाता है।

भगवान कृष्ण की पीढ़ी के 135वें राजा विजयपाल यदुवंशी के ही विभिन्न पुत्रों में से एक से यह “ढढोर” वंश चला।

ऐसा “विजयपाल रासो “में भी वर्णन मिलता है कि यदुवंशि क्षत्रियों के उस समय राजस्थान और बृज में 1444 गोत्र उपस्थित थे।

इन्हीं विभिन्न 1444 यदुवंशी क्षत्रियों के गोत्र में से एक था ढढोर गोत्र जिन्होंने मुहम्मद गौरी के राजस्थान पर आक्रमण के समय पृथवीराज चौहान की तरफ़ से लड़ते हुए गौरी की सेना से लोहा लिया था। इन्हीं 1444 गोत्रों में से एक गोत्र है ढंढोर गोत्र जो मुहम्मद गौरी से युद्ध के बाद राजस्थान से पलायन कर उत्तरप्रदेश के बुंदेलखंड , कानपुर , व पूर्वांचल के गोरखपुर, आज़मगढ़,बलिया और बिहार की बात करे तो पटना, बक्सर और अन्य कई इलाकों में जा बसे।

ढढोर अहीर मन के बहुत साफ़ और बहुत ही ज्यादा aggresive स्वाभव के होते है,इनकी शारीरिक बलिष्ठता के किससे आपको सुनने मिल जाएंगे जिसका सबसे बड़ा उदारहण है चौराचौरी काण्ड के विद्रोहियों के नेता स्वर्गीय पहलवान चौधरी कोमल सिंह यादव जी और महाबली स्वर्गीय पहलवान चौधरी विशवनाथ यादव जी

भले ही पुर्वांचल के यादव धन से कमज़ोर रहे हों लेकिन इनमें इनके क्षत्रिय होने का अखंड अहसास ज़िंदा था जो काफ़ी होता है एक क्षत्रिय के लिए।

पूर्वांचल के अहीरों की सुबह अखाड़े में कुश्ती लड़ने से शुरू होती है और ये स्वभाव से थोड़े विनम्र और थोड़े अकडु़ भी होते हैं।

ग्वालवंशी अहीरो की तरह ढढोर अहीरो को भी गौ माता से अपार प्रेम और विशेष लगाव है,पुर्वांचल में ढढोर अहीरो की बहुत सी ऐसे कहानिया मिल जाएगी जिसमें गौ रक्षा के लिए ढढोर अहीरो ने अपनी जान तक दे दी।

 

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